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"सुब्ह का अफ़साना कहकर शाम से / शकील बँदायूनी" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=शकील बदायूँनी
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सुब्ह का अफ़साना कहकर शाम से
 
सुब्ह का अफ़साना कहकर शाम से
खेलता हूं गर्दिशे-आय्याम1से
+
खेलता हूं गर्दिशे-आय्याम<ref>कालचक्र</ref>से
  
 
उनकी याद उनकी तमन्ना, उनका ग़म  
 
उनकी याद उनकी तमन्ना, उनका ग़म  
 
कट रही है ज़िन्दगी आराम से  
 
कट रही है ज़िन्दगी आराम से  
  
इश्क़ में आएंगी वो भी साअ़तें2
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इश्क़ में आएंगी वो भी साअ़तें<ref>क्षण</ref>
 
काम निकलेगा दिले-नाकाम से  
 
काम निकलेगा दिले-नाकाम से  
  
 
लाख मैं दीवाना-ओ-रूसवा सही  
 
लाख मैं दीवाना-ओ-रूसवा सही  
फिर भी इक निस्बत3 है तेरे नाम से  
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फिर भी इक निस्बत<ref>संबंध</ref> है तेरे नाम से  
  
सुबहे-गुलशन4 देखिये क्या गुल खिलाए5
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सुबहे-गुलशन<ref>उपवन की सुबह</ref> देखिए क्या गुल खिलाए
 
कुछ हवा बदली हुई है शाम से  
 
कुछ हवा बदली हुई है शाम से  
  
हाय मेरा मातमे-तश्नालबी6
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हाय मेरा मातमे-तश्नालबी<ref>पिपासा का शोक</ref>
शीशा7 मिलकर रो रहा है जाम से  
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शीशा<ref>बोतल</ref> मिलकर रो रहा है जाम से  
  
हर नफ़स8 महसूस होता है ‘शकील’
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हर नफ़स<ref>श्वास</ref> महसूस होता है ‘शकील’
आ रहे हैं नामा-ओ-पैग़ाम8 से  
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आ रहे हैं नामा-ओ-पैग़ाम<ref>पत्र और संदेश</ref> से  
शब्दार्थ-
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1. कालचक्र
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</poem>
2. क्षण
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3. संबंध
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4. उपवन की सुबह
+
5. फूल खिलाए
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6. पिपासा का शोक
+
7. बोतल
+
8. श्वास
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9. पत्र और संदेश
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13:24, 20 अप्रैल 2016 के समय का अवतरण

सुब्ह का अफ़साना कहकर शाम से
खेलता हूं गर्दिशे-आय्याम<ref>कालचक्र</ref>से

उनकी याद उनकी तमन्ना, उनका ग़म
कट रही है ज़िन्दगी आराम से

इश्क़ में आएंगी वो भी साअ़तें<ref>क्षण</ref>
काम निकलेगा दिले-नाकाम से

लाख मैं दीवाना-ओ-रूसवा सही
फिर भी इक निस्बत<ref>संबंध</ref> है तेरे नाम से

सुबहे-गुलशन<ref>उपवन की सुबह</ref> देखिए क्या गुल खिलाए
कुछ हवा बदली हुई है शाम से

हाय मेरा मातमे-तश्नालबी<ref>पिपासा का शोक</ref>
शीशा<ref>बोतल</ref> मिलकर रो रहा है जाम से

हर नफ़स<ref>श्वास</ref> महसूस होता है ‘शकील’
आ रहे हैं नामा-ओ-पैग़ाम<ref>पत्र और संदेश</ref> से

शब्दार्थ
<references/>