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सूकी रोटी / जनकराज पारीक

सूकी रोटी माथै प्याज'र लूण री डळी
म्हानै तो लागै ज्यूं म्हारी लाटरी निकळी।

ऊंचा डूंगर गै'री खायां अबखायां जग री।
लांघेली बेट्या म्हारी अै भूख में पळी।

बडै-बडां रा मान माजणां करदयै चकनाचूर।
मुठी सूं बारै आवै जद अेक आंगळी।

अब काळै तो स्यात् जमानो लागसी जबरो।
उमड़ घूमड़ उमटी है थांरी रूप बादळी।

मग में जे थे पलक बिछायां बैठ्या हो सजन।
आवस्यां म्हे पगां उभाणा आपरी गळी।