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सूनी आंखें, टूटे सपने, लड़की की तन्हाई भी / नज़्म सुभाष

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सूनी आंखें, टूटे सपने, लड़की की तन्हाई भी
चूल्हा-चौका, कर्कश भौजी ,अम्मा की अगुआई भी

ईंटा- गारा, बालू , गैंती, बल्ली , रस्सी , दीवारें
पांव थके पर मज़दूरों को,करनी आज कमाई भी

सब्ज़ी- झोला, राशन ,मछली,और दवाई की शीशी
 बच्चे बोले - 'बाबा-बाबा, मेरे लिए मिठाई भी'

संबंधों की मर्यादा है, लेकिन मन खट्टा - खट्टा
उधड़े रिश्ते, सूई-धागा, करनी है तुरपाई भी

भूखा बछड़ा, बेबस हैं थन,दूध-दही,घी अपना सब
आंख पनीली, तकती गैया,व्याकुल हो चिल्लाई भी

खाली ज़ेबें, खर्चे ज़्यादा , त्योहारों की आमद है
साथ न देती ऐसे क्षण में, खुद अपनी परछाई भी

टूटा चश्मा, चिथड़ा फतुही, खेती सूखी पानी बिन
सब को साधे कैसे बूढ़ा, जोड़े पाई-पाई भी

कच्चे -बच्चे, चिल्ला चिल्ली, अदहन, बटुली चूल्हे पर
पेट कई थे खप जाती थी, घूरे की चौलाई भी