भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूनी खिड़की ! / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:23, 31 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कविता भट्ट |संग्रह= }} Category: ताँका...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


1
सूनी खिड़की
राह निहारे तेरी
आँखों में भर
मिलन का काजल
मचलता आँचल।
2
बसन्त आया
गुजरा चुपचाप
अब की होली
सैनिक के घर में
करती थी विलाप ।
3
चूल्हा सीला- सा
लेकिन मैं सुलगी
इस सावन
पिय तुम प्रहरी
विरहन ठहरी ।
4
चयन करे
शूल-शय्या गर्व से
सैनिक -प्रिया
उसे भी है कहना
महान वीरांगना ।
5
सूनी है घाटी
रो रहे देवदार
नदी उदास
दहली कल रात
नृशंस था प्रहार ।
6
स्तब्ध खड़ा है,
हिमालय के मन
उद्वेग बड़ा है,
मानवता के शव
गिनता रात-दिन।
7
निर्भय खड़ा
हिमगिरि महान
मातृ-प्रहरी
धवल परिधान
उन्मुक्त राष्ट्रगान।
8
बूढ़ा चिनार
खड़े हो सीमा पर
रहा निहार
शव मातृ-भक्तों के
नैनों में सूनापन।
9
पराजित -सी
है विजयादशमी
रावण- द्वार
देखती मूक बनी
धर्म-नीति-संहार ।
-0-