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सूप का शायक़ हूँ यख़नी होगी क्या / अकबर इलाहाबादी

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सूप का शायक़<ref>शौक़ीन</ref> हूँ, यख़नी<ref>एक किस्म का शोरबा जो पुलाव पर डाला जाता है</ref> होगी क्या
चाहिए कटलेट, यह कीमा क्या करूँ

लैथरिज<ref>एक लेखक</ref> की चाहिए, रीडर मुझे
शेख़ सादी की करीमा,<ref>शेख़ सादी की एक क़िताब जिसमें ईश्वर का गुणगान किया गया है</ref> क्या करूँ

खींचते हैं हर तरफ़, तानें हरीफ़<ref>दुश्मन या विरोधी</ref>
फिर मैं अपने सुर को, धीमा क्यों करूँ

डाक्टर से दोस्ती, लड़ने से बैर
फिर मैं अपनी जान, बीमा क्या करूँ

चांद में आया नज़र, ग़ारे-मोहीब<ref>गहरी गुफ़ा</ref>
हाये अब ऐ, माहे-सीमा<ref>चन्द्रमुखी</ref> क्या करूँ

शब्दार्थ
<references/>