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"सूरज अभी निकला है / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु" के अवतरणों में अंतर

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जीने के लाखों हैं ,मरने के हज़ारों हैं
 
जीने के लाखों हैं ,मरने के हज़ारों हैं

00:54, 27 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

जीने के लाखों हैं ,मरने के हज़ारों हैं
सूरज अभी निकला है ,क्यों सोचें मरने की ।
जीवन के द्वारे पर ,कभी भीख नहीं माँगी
गर मौत भी आ जाए ,ये बात न डरने की ।
क्या उनको समझाना , जो अक्ल के दुश्मन हैं
नहीं सोचें कभी बातें ,उनको खुश करने की ।
जिस देश न जाना था , वह बाट नहीं पकड़ी
हमने ना कभी सोची, रीता घट भरने की ।
जिनके सन्देशों ने ,जीवन था दिया हमको
बख़्शीश उन्हें क्यों दें , बीहड़ में विचरने की ।
जीने की तमन्ना है कि मरने नहीं देती
उनकी तो रही फ़ितरत अंगारे धरने की ।