भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूरज आज गेरग्यौ घर में / मंगत बादल

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:55, 30 अप्रैल 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKCatGeet}} {{KKRachna |रचनाकार=मंगत बादल |संग्रह= }} {{KKCatRajasthaniRachna...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
सूरज आज गेरग्यौ घर में,
अँधारै री डाक ।
बीज्या आम दोसदियां
कीं नै ऊगियाया आक ।।

पड़ग्या क्यूं कमजोर,
ऊजळा आखर प्रीत रा ?
फिरै भटकता कजळी बन में,
मिरगा गीत रा ।
ढूंढै कांई चितराम आज वा
अर्जुन वाळी आँख ?
मन रो सुवटो किण विध उडसी,
किणी कतर दी पाँख ।

अै दिवलै रा बोपारी कुण,
किण देसां सूं आया ?
गळी- गळी में बेचै सपनां,
लेवै लोग लुगायां ।
काग निमोळी खायां जावै,
छोड छुआरा दाख ।
बीच बजारां खड़ो कबीरो,
हाटां बिकगी साख ।

लाम्बी ताण रुखाळा सोग्या,
खेत जीमगी बाड़ ।
सूंई साँझ में गुवाड़ बिचाळै,
कुण रोपी है राड़ ?
लिख्या जिका पानां माथै म्हे,
बण्या भाग रा आँक ।
माँदी पड़गी आँच,
अँगारां ऊपर आगी राख ।