Last modified on 2 मई 2017, at 18:35

सूरज जी / अनुभूति गुप्ता

रोज समय पर सूरज दादा,
नित्य-नियम से उग जाते हो।
सोने के जैसी किरणों से,
जग को सुबह जगाते हो।

इतनी जल्दी क्यों आते तुम,
नींद सभी की खा जाते तुम।

खोल पिटारा तुम प्रकाश का,
उजियारा नित लाते हो।
जब प्यारे सपने आते हंै,
तब तुम हमें उठाते हो।

आओ मीठी टॉफी खाओ,
अब भौंहें मत चढ़ाओ।