Last modified on 2 मई 2017, at 18:35

सूरज जी / अनुभूति गुप्ता

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:35, 2 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुभूति गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रोज समय पर सूरज दादा,
नित्य-नियम से उग जाते हो।
सोने के जैसी किरणों से,
जग को सुबह जगाते हो।

इतनी जल्दी क्यों आते तुम,
नींद सभी की खा जाते तुम।

खोल पिटारा तुम प्रकाश का,
उजियारा नित लाते हो।
जब प्यारे सपने आते हंै,
तब तुम हमें उठाते हो।

आओ मीठी टॉफी खाओ,
अब भौंहें मत चढ़ाओ।