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सूरज थकने के संग-२ / सरोज परमार
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12:41, 29 जनवरी 2009
<poem>
एक सूरज के थकने के संग
जात
जाग
उठी ऊँघती
हात
हाट
चक
चहक
रही है ढीली खाटचाय के गिलासों से दिन भर का सन्नाटा भेदते
लड़के -बूढ़े.
दिन भर की ख़बरों को खँगालते
चन्द अधेड़
राजनीति के चटखारे लेते
दो-
चाह
चार
गिरगिट
लाचार अशिक्षित
जागा है आधी रात तक
द्विजेन्द्र द्विज
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