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<poem>
एक सूरज के थकने के संग
जात जाग उठी ऊँघती हातहाटचक चहक रही है ढीली खाटचाय के गिलासों से दिन भर का सन्नाटा भेदते
लड़के -बूढ़े.
दिन भर की ख़बरों को खँगालते
चन्द अधेड़
राजनीति के चटखारे लेते
दो-चाह चार गिरगिट
लाचार अशिक्षित
जागा है आधी रात तक