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सूरज ने भेजी है / संजीव वर्मा ‘सलिल’

सूरज ने भेजी है
वसुधा को पाती,
संदेसा लाई है
धूप गुनगुनाती...

आदम को समझा
इंसान बन सके
किसी नैन में बसे
मधु गान बन सके
हाथ में ले हाथ
सुबह सुना दे प्रभाती...

उषा की विमलता
निज आत्मा में धार
दुपहरी प्रखरता पर
जान सके वार
संध्या हो आशा के
दीप टिमटिमाती...

निशा से नवेली
स्वप्नावली उधार
माँग श्वास संगिनी से
आस दे सँवार
दिवाली अमावस के
दीप हो जलाती...

आशा की किरण
करे मौन अर्चना
त्यागे पुरुषार्थ स्वार्थ
करे प्रार्थना
सुषमा-शालीनता हों
संग मुस्कुराती...

पावस में पुष्पाये
वंदना विनीता
सावन में साधना
गुंजाये दिव्य गीता
कल्पना ले अल्पना
हो नर्मदा बहाती...