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"सूरज रे जलते रहना / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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जो डर को बेचा करते वो
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जीवन रेख अमिट धरती की
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हिमयुग आए गए बहुत से
  
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लगातार चलते रहना
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तेरा हर इक बूँद पसीना
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छू धरती अंकुर बनता है
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हो जाती है धरा सुहागिन
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तेरा ख़ून जहाँ गिरता है
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बन सपना बेहतर भविष्य का
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कण-कण में पलते रहना
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छँट जाएगा दुख का कुहरा
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ठंड ग़रीबी की जाएगी
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ये लंबी काली रैना भी
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छोटी ही होती जाएगी
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बस अपनी किरणों से
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बर्फ़ सियासत की दलते रहना
 
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20:25, 21 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

तन में मन में
जब तक ईंधन
सूरज रे जलते रहना
 
जो डर को बेचा करते वो
जग का अंत निकट है कहते
जीवन रेख अमिट धरती की
हिमयुग आए गए बहुत से

आग अमर लेकर सीने में
लगातार चलते रहना
 
तेरा हर इक बूँद पसीना
छू धरती अंकुर बनता है
हो जाती है धरा सुहागिन
तेरा ख़ून जहाँ गिरता है

बन सपना बेहतर भविष्य का
कण-कण में पलते रहना
 
छँट जाएगा दुख का कुहरा
ठंड ग़रीबी की जाएगी
ये लंबी काली रैना भी
छोटी ही होती जाएगी

बस अपनी किरणों से
बर्फ़ सियासत की दलते रहना