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सूरत तो वही है जरा सीरत बदली सी है / कबीर शुक्ला

सूरत तो वही है ज़रा सीरत बदली-सी है।
मौसम का असर देखो तबीयत बदली-सी है।
 
जिन्से-वफ़ा नहीं अब दिखती खुश्क-रू पर,
मेरे रफ़ीकों की शायद नीयत बदली-सी है।
 
कोई दिले-मरहूम फ़सुर्दा कोई जख़्मखुर्दा,
आदमी हैं वही पर आदमियत बदली-सी है।
 
मेरे गुलिस्ताँ से आजकल है बू-ए-ग़ुल आती,
शाख़ निहाल बाग की रंगत बदली-सी है।
 
बर्गे-नबात पर हैं क्यूँ सहाबे-नसीमे-बहार,
मौसम बदला है या फ़ितरत बदली-सी है।
 
एस्तादा रहना मुश्किल है हुजूमे-सरसर में,
विसाले-बहर है लेकिन हिम्मत बदली-सी है।
 
घर बसर मकाँ मुकाँ सब कुछ बदल गया,
इंसाँ बदला या पूरी ख़िलकत बदली-सी है।