भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूरत सिंह पहुंची बन्धवा ले रे / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूरत सिंह पहुंची बन्धवा ले रे रे तनें कह रही बाहण मां जाई
पहुंची के बंधवा ल्यूं हे इक बिर बागां में जाणा
चन्दरा मैं भाजा आया हे हे मनें रोटी भी ना खाई
चन्दरा भूल गया था हे सुरजकौर न याद दिवाई
चन्दरा पहुंची बांधदे हे कह रहा सै सुरत सिंह भाई
पहुंची ठाके बांध ले रे गंगा में धो के सुखाई
मैं चमरे की जाई रे रे मिट जाएगा सुरत सिंह भाई
चमरे का बण के बंधा लूं रे बांधौ ना बाहण मां जाई
चन्दरा पहुंची बांधी हे पहुंचे पै आंसू आई
चन्दरा साच बता दे किस दुख में आंसू ल्याई
नवमी का दिन धर राख्या रे तेरा जीजा फांसी टूटे
सुरत सिंह कुछ भी न बोल्या हे जीजा के बदले में मर गया