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सूर्यास्त / फ़्रेडरिक होल्डरलिन

कहाँ हो तुम ?
अभी भी शेष
इस द्वाभा की दिप्तिमयी चमक के भीतर से
तुम्हारा आनन्द
मेरी आत्मा को भर देता है ;
क्योंकि अभी सुना है मैंने
                        उत्कण्ठित हो :
कैसे भर गया है
सूरज के प्रकाश का
हर्ष से उन्मत्त कर देने वाला यौवन
             सुवर्णिम झंकारों से
अपनी स्वर्गिक बीन पर
बजाया है उसने गोधूलि का गीत ;
वाण-पंक्तियों और पहाड़ियों के आर-पार
             चहुँ ओर
             वह हुआ है अनुगुंजित
पर दूर, बहुत दूर
             जहाँ उपासक हैं
जहाँ लोग अब भी कर रहे हैं
             उसका स्तवन
             वहाँ से वह हो गया है
             अस्तमित ।