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सेतु / भी० न० वणकर / मालिनी गौतम

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भले ही
तुम्हारे और मेरे मोहल्ले
अलग-अलग हैं,
पर धरती और आकाश तो
एक है न?

ज्योतिषी भले ही कहते हों
कि भाग्योदय अवश्य होगा
लेकिन आज तो मैं
बिल्कुल ख़ालीखम आकाश के नीचे
ज़िन्दगी के अभाव लिए
खड़ा हूँ

चारो ओर
दोपहर की धूप,
जंगल की तपती लू
और वैशाखी चक्रवात का गर्जन है

लेकिन फिर भी
मैं तुम्हें दूँगा
मुट्ठी में बंद मीठी सुगन्ध,
अतृप्त होठों का तड़पता मौन,
और व्याकुल हृदय के वैभवी गीत

लेकिन, कहो न
तुम मुझे क्या दोगे?
   
अनुवाद : मालिनी गौतम