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सोच समझकर / अश्विनी कुमार आलोक

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प्रेमपत्र जो तुम लिखना
तो सोच समझकर

प्रेम सभी को नहीं चाहिए
और भी कितने लोग हैं घर में
फूटी आंख नहीं भाते हैं
ये दिन और ये रात, उमर में
आंख गड़ाये देख रहे हैं
ठहर ठहर कर

यह अछूत का पानी बायन
धर्म नष्ट होता है इससे
सिर्फ अकेले प्रेम के कारण
लोग कहेंगे इससे उससे
नाक कटी सिर झुका जा रहा
गांव-गली-घर

खिड़की अगर खुली पाओ तो
प्रेमपत्र न उससे भेजो
ठहरो, अपनी इस किताब के
अक्षर अक्षर जरा सहेजो
प्रेमपत्र जूड़े से बांधो
हंसो चहक कर