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सोनारऽ थारी तेल रे हरदी / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत पूर्णिया जिले के बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्र से आया है। इस गीत पर बँगला का कुछ प्रभाव पड़ा है या संभव है कि बँगाल में वैवाहिक संबंध होने के कारण वहाँ से यहाँ आ गया हो।
दुलहा स्नान करके लौटते समय दुलहिन से पूछता है कि तुम यहीं खेलोगी या मेरे साथ चलोगी। दुलहिन उत्तर देती है- ‘अब मैं सयानी हो गई, मेरे खेलने-खाने के दिन बीत गये। मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूँ।’

सोनारऽ थारी तेल रे हरदी, रूपा थारी कासा<ref>कटोरा। हरदी कासा=बरात में तेल, सुपारी, साबुन, तंबाकू आदि भेजना</ref>।
सिलान<ref>स्नान करने</ref> करिबा<ref>करने</ref> जाछेन<ref>जाता है</ref> रे बलहा<ref>बरुआ; दुलहा</ref>, चमगोरारो<ref>नदी विशेष का नाम</ref> लदी<ref>नदी</ref>।
सिलान करिबा आसेन<ref>आता था</ref> रे बलहा, ओरेर<ref>उसके</ref> माथार जुलफी॥1॥
सुनसि<ref>सुनो</ref> सुनसि गे अम्माँ, काहार<ref>किसके</ref> अगियैन<ref>आगे</ref> रोवे।
सुनसि सुनल्हाँ<ref>सुना</ref> रे बलहा, तुमसार<ref>तुम्हारे</ref> अगियैन रोवे॥2॥
अँगुरी लगाय रे बलहा, पूछे दिलअ<ref>दिन की</ref> बात हे।
किए धानि तोहें खेलबे रे धानि, जमुनारऽ<ref>यमुना के</ref> जल॥3॥
किए तोहें खेलबे रे धानि, कमलारऽ<ref>कमला के</ref> दहअ<ref>दह; जलाशय; धारा</ref>।
किए तोहें जैबे<ref>जाओगी</ref> रे धानि, हमरो सँगे साथे हे॥4॥
जाहा धरि<ref>जब तक</ref> छेल्हाँ<ref>थी</ref> हे परभु, अलैते<ref>‘बुलैते’ का अनुरणानात्मक प्रयोग</ref> बुलैते<ref>टहलते हुए; पड़ोसियों के यहाँ घूमने के लिए जाना</ref>।
ताहा<ref>तब तक</ref> धरि खेलल्हा<ref>खेला</ref> हे परभु, जमुनारऽ दहअ।
ताहा धरि खेलल्हाँ हे परभु, कमलारऽ दहअ॥5॥
आबे<ref>अब</ref> भये गेल्हाँ<ref>हो गई</ref> हे परभु, तोहरियो<ref>तुम्हारे</ref> जोगे<ref>योग्य</ref>।
जाइबऽ हमैं तोहरियो सँगे॥6॥

शब्दार्थ
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