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सोने की सी बेली अति सुँदर नबेली बाल / मतिराम

सोने की सी बेली अति सुँदर नबेली बाल ,
ठाढ़ी ही अकेली अलबेली द्वार महियाँ ।
मतिराम आँखिन सुधा की बरखा सी भई ,
गई जब दीठि वाके मुखचँद पहियाँ ।
नेकु नीरे जाय करि बातनि लगाय करि ,
कछु मन पाय हरि बाकी गही बहियाँ ।
चैनन चरचि लई सैनन थकित भई ,
नैनन मे चाह करै बैनन मेँ नहियाँ ।


मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।