भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोन-चिरइया / राजकमल चौधरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:21, 5 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकमल चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उड़लइ सोन-चिरइया
साँझ मुन्हारि खन
काँपल डारि
भेल थिर
बहल हवा घेरि झिर-झिर-झिर
घाट घुराबह नाह खेबइया,
उड़लइ सोन-चिरइया
अन्हार भेल
तट छल, से अगम धार भेल
काँपल लहरि
भेल थिर।

(मिथिला-दर्शन, मइ: 1959)