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सोहति उतंग, उत्तमंग ससि संग गंग / सेनापति

सोहति उतंग, उत्तमंग ससि संग गंग,
गौरि अरधंग, जो अनंग प्रतिकूल है।
देवन कौं मूल, 'सेनापति अनुकूल, कटि
चाम सारदूल को, सदा कर त्रिसूल है॥
कहा भटकत! अटकत क्यौं न तासौं मन,
जातैं आठ सिध्दि, नव निध्दि रिध्दि तू लहै।
लेत ही चढाइबे को, जाके एक बेलपात,
चढत अगाऊ हाथ, चारि फल-फूल है॥