भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सो जा वा रे वीर तुम तो सो जाओ वा रे वीर / बुन्देली
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:44, 27 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
सो जा वा रें वीर, तुम तो सो जाओ वा रे वीर।
बीरन की बलैयां ले गईं जमुना के तीर।।
वर पे डाले पालना, पीपल पे डारी डोर।
जो लों कन्हैंया सोवन लागे ऊपर बोली मोर।
सो लो मोरे लाड़ले, तुम जब लो होने भोर।
आवत-जावत झोंका देहों, कबहूं न टूटे डोर।
माई गई है मायके, बीरन गये ससुराल।
भैया गयें हैं चाकरी, भाभी ठांढ़ी द्वार।
ताती-ताती खीर बनाईं, जामे डारो घी।
दो कौर खा लो लाड़ले, ठण्डो पड़ जाये जी।