भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सौंदर्यबोध / अरुण कुमार नागपाल

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:21, 15 मार्च 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लॉन में ख़ुश्बू बिखराते
सफ़ेद ,गुलाबी, पीले फूल
लगते हैं उसे
अपने बच्चों की तरह
पर उसी लॉन में
घास पर बैठे हुए
माली के बच्चे
चुभते हैं उसे शूल की तरह
कितना अजीब है
उसका सौंदर्यबोध.