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सौन्दर्य का एक क्षण / वीरेन्द्र कुमार जैन

सर्दी की सुबह :
कॉलेज के बरामदे में,
ताश-चिड़ियानुमा जाली,
उसमें झलमलाती हरियाली पत्राली :
इस ओर चिड़ियों की
धूप-छाया चित्राली।
...यह क्षण चित्रित था मेरे भीतर
कहीं बहुत दूर :
वक़्त के पहले कहीं और।
वक़्त में होना किस क़दर दिलचस्प है,
उसकी हदों तक जाने के सफ़र के लिए!

...प्याला बेशक टूट गया
हाथ से गिरकर :
मगर साबुत है प्याला वहाँ
जहाँ मैं हूँ आख़िर!


रचनाकाल : 20 नवम्बर 1975, कॉलेज परीक्षा-हॉल