सौ ऐब हैं मुझमें न कोई इल्मोहुनर है
ज़र्रे को आफ़ताब किया, तेरी नज़र है
हरदम चिराग़-दर-चिराग़ जोड़ते चलो
यह रात है ऐसी कि नहीं जिसका सहर है
कुछ तो सता रहा है ज़माने का ग़म हमें
कुछ आपकी ख़ामोश निगाहों का असर है
फूलों से हार गूँथके लाना है और बात
काँटों से ज़िन्दगी को सजाने में हुनर है
कुछ बुलबुलों ने लूट लिया, कुछ बहार ने
बाक़ी जो है गुलाब वो दुनिया की नज़र है