सौ बार उससे लड़ के भी हर बार हारना / रिंकी सिंह 'साहिबा'
सौ बार उससे लड़ के भी हर बार हारना,
बाज़ी हो इश्क़ की तो मेरे यार हारना।
उससे शिकस्त खाने में हर बार लुत्फ़ है,
एक बार हारना हो के सौ बार हारना।
वो दिल पर हाथ रख दे अगर प्यार से कभी,
दिल का यही तकाज़ा है, दिलदार हारना।
दुनिया में रोशनी है वफ़ाओं के नूर से,
बनकर किसी के तुम भी तलबगार हारना।
जिनकी दुआओं से तेरी हस्ती कमाल है,
मां बाप के लिए तो ये संसार हारना।
है लुत्फ़ ज़िंदगी का मुहब्बत की क़ैद में,
पहलू में उनके होके गिरफ़्तार हारना।
रखना बुलंदियों पर हमेशा वक़ार को,
तुम जान हारना, नहीं दस्तार हारना।
ऐसा भी वक़्त आया है अहद ए शबाब में,
इक फूल के लिए कोई गुलज़ार हारना।
इल्म ओ अदब में हमने ये सीखा है "साहिबा" ,
रख कर क़लम के सामने तलवार हारना।