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स्त्री / मुइसेर येनिया

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हवा
चल
रही
है
बुहार रही है
शब्दों के
इर्द-गिर्द की रेत

हर कोई
पुकार
रहा है
ईश्वर !

मैं खुद को
भीतर से
निकाल रही हूँ
बाहर
अपने ही
हाथों से ।

मैं
वो जगह हूँ
जहाँ
मनुष्य
कम हैं
ईश्वर
ज़्यादा ।