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स्थाई भाव / नीरज दइया

आती तो है खुशी
पर थम जाती है दूर कहीं
बिना मिले हीं....

आंखों में सावन
उफनती है नदी
अगले मौसम में उसे
पाता हूं- सूखी....

सागर पर लहर-सी आई तुम
मिलने से पहले उदासी थी
वह जरा टूटी ही थी
तुम्हारे जाने के बाद
फिर घेर लिया है मुझे उदासी ने।

लिख रहा हूं मैं-
प्रेम का स्थाई भाव
उदासी क्यों है...!