Last modified on 17 जून 2015, at 10:50

स्नातक / भाग – 3 / जतरा चारू धाम / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:50, 17 जून 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

विलमु कने नाविक! तिरहुति इ्र, तीर - तीर अछि भुक्ति
उतरि एतय छन बिछय दियऽ बिखरल कन मुक्ता मुक्ति।।31।।

एतहि हमर वाग्वती बहै छथि शुचि-रुचि लघु-लघु स्रोत
बाग्बीज क उर्वरक जनिक जल कवि कल्पना इजोत।।32।।

कमला कलकल, जीबछ छलछल, बलबल बहय बलान
कोस कोस सँ कोसिक गरजन सुनबे यदि न अकान।।33।।

लखन - देवि तिलयुगा धेमुरा गंडक कुटिल कड़ेह
सीमा सदा सदानीरासँ सजल रहैछ विदेह।।34।।

कूप कुंड सागर दिग्घी पोखरि चर-चाँचर जाय
चुभुकि चुभुकि मन भरब, हरब श्रम, जी भरि नदी नहाय।।35।।

कुटिल कुशिक कन्या कोसी जे छली कुपित किछु पूर्व
आइ सुबन्ध बन्धुता सँ छथि भेलि प्रसन्न अपूर्व।।36।।

मिलइछ स्वच्छ मने गंगा - बहिनिक सँग तुंग तरंग
कोसी पौषी अमा नहायब सिंहेश्वर पुजि संग।।37।।

रौदी दागल देह, बाढ़ि बहिआयल सालक साल
अछि अभ्यास स्ववश वा विवशहु स्नातक काल अकाल।।38।।

पूर्व - पूर्णिमा कमला जायब, सकराँतिहु त्रिमुहान
जेठ - दसहरा वारुनि अर्धोदय गंगा असनान।।39।।

बिचहि अजगबीनाथ गंग बिच जनपद अंग न दूर
तनि जलधारा पुजि, अभाग दुरि भागब भागलपूर।।40।।

मुद्गलपुर मुंगेर दुर्ग कर्णहुक, कष्ट - हरि घाट
बाद मुर्शिदा प्लासी रंग फिरंगिक उत्कट काट।।41।।

पुर परिसर नव नव तटवर्ती हुगली हुलसि विशेष
कलकत्ता काली क परसि पद ललित, तरंगित देश।।42।।

बिच-बिच मठ बेलूर दक्षिणेश्वर मा देवी घाट
राम-कृष्ण पद अंकित एखनहु मणि छितरायल बाट।।43।।

माघ मकर सकराँति तुलाबल सागर संगम तीर
कपिल जठर क्रोधानल दग्धल सगरक सुत अशरीर।।44।।

अपराधहु उद्धार जतय पुनि दण्डहु मुक्ति अनन्त
डुब दय पाप क राशि डुबायब सागर संगम अन्त।।45।।