भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्पर्श / विजय कुमार पंत

Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:12, 20 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय कुमार पंत }} {{KKCatKavita}} <poem> स्पर्श से लिख दूं कहो …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्पर्श से लिख दूं कहो
संवेदना मनुहार की
आत्मा की अर्चना
और सत्यता संसार की
स्पर्श से लिख दूं कहो …
शरण में आगोश की
मदहोशियाँ जाती मचल
प्रणय की वो प्यास लेकर
नयन जब जाते है जल
कर रही खामोशियाँ
उदघोषनाये प्यार की
स्पर्श से लिख दूं कहो ……
उँगलियों में प्रेम सिमटा
आसमान पर कुछ लिखूं
साँस लपटें बन के तन की
तुम जलो मैं भी जलूं
ख़त्म करदें राख होकर
तपिश तन त्यौहार की
स्पर्श से लिख दूं कहो....