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स्मृतिलोप / अनुराधा सिंह

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स्मृतिलोप बड़ा शस्त्र था
विसंगतियों विषमताओं अन्याय के विरुद्ध
भूल जाना बड़ी शक्ति
विभव था
पराक्रम
बल था
था ज़हरमार
रीढ़ को निगलती पीड़ा झटक देने
कबूतर की तरह आँखें पलट लेने
पत्थर पहाड़ पार्क बेंचें उन पर बैठे
अब और न बैठे लोग
भुलाए बिना जीवन असंभव था
चादर ओढ़ने से रात नहीं कटती
करवट बदलने से दुस्वप्न कहाँ टलते हैं
मुड़े हुए पृष्ठ सीधे किए बिना पढ़ना दुष्कर
सूखे गुलाबों को एक अनाम कोने में विस्मृत कर आना ही श्रेयस्कर था
तुम्हारे नाखूनों और आँखों का रंग भूल जाना
अनिवार्य शर्त थी अगली एक श्वास के लिए।