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स्मृतिशेष शिवांगी / श्वेता राय

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(बहन की स्मृति में)

एक नाजुक थी कली वो।
झर गई है अधखिली जो।

मन कनक सम वो सुहाई।
माघ में जब गोद आई।
उर्मियोँ से दीप्ति लेकर,
जग हृदय पर खूब छाई।
श्वास में सबके घुली वो।
झर गई है अधखिली जो॥

थी प्रथम कुरुक्षेत्र में वो।
नेह रखती नेत्र में वो।
छू गई सोपान पहला,
रुग्णता के क्षेत्र में वो।
चाँदनी मधु से जली वो।
झर गई है अधखिली जो।

मलयनिल जब बह रही थी।
ताप वो अति सह रही थी।
जूझती थी आस से पर
मृत्यु उसको गह रही थी।
हाथ नियति के तुली वो।
झर गई है अधखिली जो।

सेज पर लेटी सुहागन।
स्वप्न दृग में भर सुहावन।
बन गई निष्ठुर जगत से,
छोड़ कर सुत एक पावन।
मोड़ मुँह सबसे चली वो।
झर गई है अधखिली जो।

(कोई भरपाई नहीं है समय के पास अपनी क्रूरता की)

15 नवम्बर 2016