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स्मृति की धरती पर / मदन गोपाल लढा

अनजान मार्ग पर
चलते हुए
याद आते हैं
कई चेहरे।

जिनके सच की
साख भरती है स्मृति
सबूत है शब्द
उनके वज़ूद का।

डग-मग डोलता जीव
हृदय के आंगन में
भटकता है
पीछे भागती है
एक अप्रिय छाया
बेखौफ़।

ख़ुद से भागता जीव
अंतस की आरसी में
तलाशता है
अनजान चेहरे
और बाँचता है
स्मृति की धरती पर
जीवन के आखर।


मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा