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स्याही / आरती 'लोकेश'

पन्नों पर छींटे रंगीन, या कोई है कलाकृति,
आड़ी तिरछी रेखाएँ, या है अतुल्य आकृति,
नटखट मन ने दी उँडेल, स्याही की अनुकृति,
या किसी विज्ञ ने है रची, यहाँ अनन्य सुकृति।

बाहर बिखेरे गए जो, थे दवात में डूबे अक्षर,
या उकेरे गए पृष्ठ पर, शांत अंतर्मन के निर्झर,
दीप्त हुए पा रोशनाई, जो तमस में लुप्त अंकुर,
या कुरेदे हैं नियति ने, मरु लेख में लघु कंकर।

कण-कण जुड़े हुए हैं, या भग्न कोई अवशेष,
तार-तार से कड़ी बनी, छिन्न-भिन्न रण वेश,
गूँथ दिए सुमन माला, या छितरे हैं पुष्प केश,
मोती चुन हार बना, या मणि छिटकी विशेष।

चक्षु से उर के भाव ये, असक्षम सहज ग्रहण,
मस्तिष्क भवन न सकें, स्याही टुकड़े भ्रमण,
हृदय से हृदय की लौ, सीमा करे अतिक्रमण,
मृदुवाणी काव्यकृति, हृदयंगम अंतस वरण।