Last modified on 10 दिसम्बर 2020, at 23:22

स्वगत / शैलप्रिया

Arti Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:22, 10 दिसम्बर 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कविता
सहेली की शाल नहीं
जिसे मौसम के मुताबिक
माँग कर लपेट लिया जाए

कविता मेरा मन है संवेदना है
मुझसे फूटी हुई रसधारा

कविता मैं हूँ
और वह मेरी सृजनशीलता है
मेरी कोख / मेरी जिजीविषा का विस्तार

इससे अधिक सही और सच्ची
कोई बात मैं कह नहीं सकती...