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स्वप्न आँखों मे सजाते रह गये हम / रंजना वर्मा

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स्वप्न आँखों मे सजाते रह गये हम
दीप सुधियों के जलाते रह गये हम

सरहदों पर जो गया हो दीर्घजीवी
देवताओं को मनाते रह गये हम

फूँक डाले दुश्मनों ने घर हमारे
और बस बातें बनाते रह गये हम

जो हमारी अस्मिता से खेलते हैं
क्यों उन्हें आँखें दिखाते रह गये हम

डर रहे मासूम सुन बम के धमाके
हो निडर यह ही सिखाते रह गए हम

राम रम में विष्णु व्हिस्की में बताते
सर झुका कर मुस्कुराते रह गये हम

जूझते आतंकियों से वीर सैनिक
उन पे ही पत्थर चलाते रह गये हम

वीर कितने किस तरह जानें गंवाते
बस गणित इस का लगाते रह गये हम
 
जिंदगी से जो गये क्या बात उन की
याद में आँसू बहाते रह गये हम