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स्वप्न में — 13-14 / रॉबर्तो बोलान्यो / उदय शंकर

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13.

सपने में
मैं कैदी था और बयतुस्स<ref>प्राचीन रोम में 480-526 ईस्वी में रोमन राजनीतिज्ञ और दार्शनिक</ref> मेरा सहक़ैदी
अपने हाथ और क़लम को
उन्हीं की परछाइयों की तरफ़ बढ़ाते हुए वह बोला :
‘वे काँप नहीं रहे हैं, वे काँप नहीं रहे हैं’
(थोड़ी देर बाद अपनी आवाज़ को स्थिर करते हुए वे बोले :
‘जैसे ही वे कमीने थिओडोरिक<ref>511-526 ईस्वी में रोमन साम्राज्य का सम्राट</ref> को पहचानेंगे, वे काँपेंगे’)


14.

सपने में
कुल्हाड़ी की हँफनी की तरह
मैं मार्क्विस द साद<ref>18वीं सदी का फ़्रांसीसी लेखक, दार्शनिक और राजनीतिज्ञ </ref>का अनुवाद कर रहा था
जंगल में रहते हुए
पागल हुआ जा रहा था

अँग्रेज़ी से अनुवाद : उदय शंकर

शब्दार्थ
<references/>