Last modified on 3 जनवरी 2009, at 23:36

स्वरों में फैल जाऊंगा / नवल शुक्ल

यहाँ रहूंगा
सपन के साथ
खुली पृथ्वी पर
पैरों और खुरों के पास
दो निर्मल आँखों और हाथों
चटककर चुपचाप
धीरे-धीरे आऊंगा।

आएंगे पक्षी, धूसर, चमकीले पंख
समुद्र से बादल
पृथ्वी पर फैल
झुक-झुक लहराऊंगा
फैलेंगी आँखें सीधी झुकी
समेट लेंगी पूरी सॄष्टि की माताएँ
हर तन में दूध बन उतर जाऊंगा।

भर जाएंगे देवालय
निकलेंगी आदिम किलकारियाँ
बज उठेंगे पैर
स्वरों में फैल जाऊंगा।