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"स्वर्ण कलश / लावण्या शाह" के अवतरणों में अंतर

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स्वर्ण ~ कलश निकल आया री !
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|रचनाकार=लावण्या शाह
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यन्त्रवत जीवन जन धन मन,
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स्वर्ण ~ कलश निकल आया री !<br>
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स्वर्ण~ कलश, कुम्हलाया री!  
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सखी, स्वर्ण कलश ढल जाता री!
 
सखी, स्वर्ण कलश ढल जाता री!

23:52, 28 जून 2008 के समय का अवतरण

स्वर्ण ~ कलश निकल आया री !
सखी, स्वर्ण ~ कलश नभ पर छाया री !
नर्तन करते , द्रुम - तृण अविरल,
नभ नील सुरभी रस आह्लादित`
सँवेदन मन मेँ, है रवि नभ मेँ,
उज्ज्वल प्रकाश लहराया री !
सखी, स्वर्ण ~ कलश उग आया री !

यन्त्रवत जीवन जन धन मन,
युगान्तर सीमित निकट चित्तभ्रम कलि का सम्मोहन,
वशीकरण बन, मन से मन तक लहराया री !
सखी, स्वर्ण कलश चढ आया री !

नर पुन्गव सब है लौट चले,
युग प्रभात की होड लगी,
युग सन्ध्या आगे दौड पडी,
वामन ह्र्दय, किन्पुरुष कलेवर,
थाम अज्ञ है खडे हुए !
सखी, स्वर्ण कलश अरुणाया री !

युग अन्त प्रतीति प्रकट हुई,
महाकाली मर्दन को उमड पडी,
युग सन्ध्या है निगल रही,
काल अमावस रात की-
कलिका के घून्घर मे जा छिप,
स्वर्ण~ कलश, कुम्हलाया री!
सखी, स्वर्ण कलश ढल जाता री!