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स्वाभाविक दान / बालस्वरूप राही

पेड़ किसी से नहीं पूछता
कहो, कहाँ से आए ?
वह तो बस दे देता छाया
चाहे जो सुस्ताए।

खिलते समय न फूल सोचता
कौन उसे पाएगा,
उस की खुशबू अपनी साँसों
में भर इत्तराएगा।

बादल से जब सहा न जाता
अपने जल का संचय
बस वह बरस बरस भर देता
नदियाँ, नहर, जलाशय।

जो स्वभाव से ही दाता हैं
उन्हें न कोई भ्रम है,
भेद-भाव करते हैं वे ही
जिन की पूँजी कम है।