भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वीकार नहीं करेगी माँ ! / विनय सौरभ

Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:36, 5 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विनय सौरभ |संग्रह= }} {{KKCatK avita}} <poem> स्वी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{{KKCatK avita}}

स्वीकार नहीं करेगी माँ कभी कि
मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़​​ते हुए भी
उसने ईश्वर से ज्यादा मेरे बारे में सोचा

नहीं स्वीकार करेगी कभी
कि मेरे शहर से लौटने तक प्रार्थना में क्यों जुटी रहती थी वह
हर आहट में मेरे मौजूद होने का अहसास क्यों बना रहता था उसके मन में

माँ कभी नहीं मानेगी कि उसने मुझे सागर सा स्नेह. दिया
और आँखों की कोरों में काजल डालकर दुनिया के सारे अपशकुनों से मुक्त रखने की कोशिश में जुटी रही

एक ताबीज़ में बंद रखा सारी बाधाओं को मेरे लिए.!

वह हँस देगी और ना में सिर हिलाएगी
जब मैं कहूँगा-

कि मेरी सारी कविताएँ
तुमसे ही जन्म लेती हैं !

माँ धरती की ओर इशारा करेगी ऐसे में
और अपने अनपढ़ होने का पूरा प्रमाण देगी।