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स्वीकार / महेन्द्र भटनागर

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अकेलापन नियति है,
हर्ष से
झेलो इसे !

अकेलापन प्रकृति है,
कामना-अनुभूति से
ले लो इसे !

इससे भागना-बचना —
विकृति है !
मात्र अंगीकार करना —
एक गति है !
इसलिए स्वेच्छा वरण,
मन से नमन !