Last modified on 2 जनवरी 2010, at 20:49

स्वेच्छा से / जय गोस्वामी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:49, 2 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=जय गोस्वामी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> उन्होंने ज़मीन दी है…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उन्होंने ज़मीन दी है स्वेच्छा से
उन्होंने घर छोडा़ है स्वेच्छा से
लाठी के नीचे उन्होंने
बिछा दी है अपनी पीठ।

क्यों तुम्हें यह सब कुछ
दिखायी नहीं देता?

देख रहा हूँ, सब कुछ देख रहा हूँ
स्वेच्छा से
मैं देखने को बाध्य हूँ
स्वेच्छा से
कि मानवाधिकार की लाशें
बाढ़ के पानी में दहती जा रही हैं

राजा के हुक्म से हथकडी़ लग चुकी है
लोकतंत्र को
उसके शरीर से टपक रहा है ख़ून
प्रहरी उसे चला कर ले जा रहे हैं
श्मशान की ओर

हम सब खडे़ हैं मुख्य सड़क पर
देख रहा हूँ केवल
देख रहा हूँ
स्वेच्छा से।

     
बांग्ला से अनुवाद : विश्वजीत सेन