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हँसते हँसते मेरी आँखें नम कर देते हैं / अशोक रावत

हँसते हँसते मेरी आँखें नम कर देते हैं,
मुझको यूँ शर्मिंदा मेरे ग़म कर देते हैं.

बात पता चलती है जब माँ की बीमारी की,
भैया भाभी आना जाना कम कर देते हैं.

शबनम को अंगारा कर देते हैं कुछ एहसास,
और कभी अंगारों को शबनम कर देते हैं.

दीवारें सी खिंच जाती हैं मन में ऐसा काम,
रंग बिरंगे साटन के परचम कर देते हैं.

हल्की हल्की बातें करके कुछ बेग़ैरत लोग,
भारी भारी सा मन का मौसम कर देते हैं.

आख़िर किस तहज़ीब पे आ कर ठहर गए हैं,
अपनों को ही अपने गाली जम कर देते हैं.

कोसों दूर चला जाता है साया भी हम से,
सोच नहीं पाते क्या ऐसा हम कर देते हैं.