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हँसी-ख़ुशी के गीत रहे दिन / हरि फ़ैज़ाबादी

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हँसी-ख़ुशी के गीत रहे दिन
किसके हरदम मीत रहे दिन

वो क्या सपने देखे जिसके
जैसे-तैसे बीत रहे दिन

रात आख़िरी बतलाएगी
किसके बड़े पुनीत रहे दिन

ओछे गीतों से बेहतर है
बिना गीत-संगीत रहे दिन

पता नहीं क्यों इस जाड़े में
रातों से भी शीत रहे दिन

शब तुम कैसे जीतोगे जब
दीप जलाकर जीत रहे दिन

झूठा है जो यह कहता है
मेरे सभी अजीत रहे दिन