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हँसी हँसी में हर इक ग़म छुपाने आते हैं / रईस सिद्दीक़ी

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हँसी हँसी में हर इक ग़म छुपाने आते हैं
हसीन शेर हमें भी सुनाने आते हैं

हमारे दम से ही आबाद हैं गली-कूचे
छतों पे हम ही कबूतर उड़ाने आते हैं

दरीचा खोल दिया था तिरे ख़यालों का
हवा के झोंके अभी तक सुहाने आते हैं

विसाल हिज्र वफ़ा फ़िक्र दर्द मजबूरी
ज़रा सी उम्र में कितने ज़माने आते हैं

हसीन ख़्वाबों से मिलने को पहले सोते थे
कि अब तो ख़्वाब भी नीदें उड़ाने आते हैं

‘रईस’ खिड़कियाँ सारी न खोलिए घर की
हवा के झोंके दिए भी बुझाने आते हैं