भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हँसी / शार्दुला नोगजा

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:54, 18 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शार्दुला नोगजा }} <poem> मुद्दत हुई है कब सुनी थी वो ह...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुद्दत हुई है कब सुनी थी वो हँसी जो गगन चूमे
और जो काली घटा पे बन के लाली बिखर जाए।

वो हँसी कि जिसको सुनने के लिए झरनों का पानी
ऊँचे पहाड़ों से निकल मेरे शहर में उतर आए।

मुद्दत हुई है कब सुनी थी वो हँसी।
मुद्दत हुई है।

लौटा दो मुझको वो हँसी वो खोया बचपन
वो माँ का आँचल जिसमें ढेरों झूले खाए।

ऐसे हँसो कि यों लगे ज्यों कोई गुड़िया
बचपन की बारिश में उछल के फिसल जाए।

मुद्दत हुई है कब सुनी थी वो हँसी।
मुद्दत हुई है।