भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हंगामा-ए-सुकूत बपा कर चुके हैं हम / सालिम सलीम
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:08, 8 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सालिम सलीम }} {{KKCatGhazal}} <poem> हंगामा-ए-सुक...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हंगामा-ए-सुकूत बपा कर चुके हैं हम
इक उम्र उस गली में सदा कर चुके हैं हम
अपने ग़ज़ाल-ए-दिल का नहीं मिल रहा सुराग़
सहरा से शहर तक तो पता कर चुके हैं हम
अब तेशा-ए-नज़र से ये दिल टूटता नहीं
इस आईने को संग-नुमा कर चुके हैं हम
हर बार अपने पाँव ख़ला में अटक गए
सौ बार ख़ुद को रिज़्क़-ए-हवा कर चुके हैं हम
अब इस के बाद कुछ भी नहीं इख़्तियार में
वो जब्र था कि ख़ुद को ख़ुदा कर चुके हैं हम