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हंसतोड़ां होठां रौ सांच / आईदान सिंह भाटी

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हरेक हंसतोड़ा होठां में
हंसी नीं व्हिया करै
केई वार मरजी परबारै ई
राजी-मन रैवणौ पड़ै मिनख नै
बरसां सूं रंगियोड़ी काळी सड़क
फगत बैवण नै ई काम नीं आवै
वा जद तूटै अर फैरूं बणै
थूं नीं जांणे-कितरा अन्ता पळै?
कोरौ बैवतौ रैवणौ ई नीं
औ दूजोड़ौ मुद्दौ खास है,
हरेक होठ हंस्या नीं करै
सावण-भादवै री घटावां में
कजराळी रेखां नै निरखतां
थारी कलम रा कोया काजळ रा कूंपला नै जीवै
पण बा नीं जांणै कै
लगो-लार पड़ता अै भैराळ काळ
वां नखराळा नैणा में
चिन्ता री छियावां रौ काजळ पोत देवै
जिकौ दस बरसरी डावड़की सूं लेयर
अस्सी बरस रो डोकरौ री निजरां में बस जावै।
जांणतां थकां ई आदमी केई वार
जिनावर री जूण जिया करै
थू नीं जांणै आदमी क्यूं हसै ?
पण उणरी टैम-टैम री हंसी अेक नीं व्हिया करै।
बड़गड़ां-बड़गड़ां बातां में घोड़ा दौड़तौ
हरखू आ बात जांणै
कै उणरै जीवण री छकड़ा-गाडी
सदा ई चूंचाड़ा करती चाली है
फाट्योडी पगरखी, साफै री लर्या
चाळ में गांठां दियोड़ी अंगरखी
कदेई इणरौ अैसास नीं व्हेण दियौ
कै आदमी दोनूं अक जीम्या करै।
पण अबै पोता नै बैवणौं सिखावती बगत
वौ चूंचाड़ां री बाता नीं
बड़गड़ां बड़गड़ां रा घोड़ा दौड़ावै
क्यूं कै वौ जांणै कै उणरी चूचांडां री बातां
बिखै री कळपती ख्यातां सुणण
उणरौ बौ छोरौ त्यार नीं व्हैला
अर पछै वा तीजी पीढी क्यूं देवैला कांन?
समदर री छाती नै चीर
काळजौ काढ
उणरी छोळां रौ सुख लेती
सोयूज अपोलो साथै
कुदरत री उंचायां सूं होड लेवती
आ हरखू री तीजी पीढी है।
जुग-जुग सूं सूतोड़ी ज्वाळामुखियां कदेई
अचांणचक फूट जया करै।
कदेई आ ई सोचो
कै दांत नीकळ्या भी करै
अर कदेई भिच भी जाया करै।
कुण जांणे कित्ता जुगां सूं
फाट्योड़ी आंख्यां, डूब्योड़ा डोळा
अेक जीवण री चितवण रै सारूं हाथ-पग मारै
पण वा चितवण
कदेई नीं आई हाथ
पीढियां-दर-पीढियां
डूब्योड़ा होळा फट्योड़ी आंख्या
फाटती जावै जीवण नै जीवण री चितवण
जंजाळ-झाळ में
मकड़ी रा जाळा में पीढी-दर-पीढि अळूझती जावै।
औ हरखू जांणै
कै कागजी घोड़ा कोरा बातां में ई बड़गड़ावै
अर पीढियां-दर-पीढियां
आं बातां री ख्यातां में स्वाहा व्हे जावै-
पण आ भावी है
आ भावी है बेटा। जिकी कदेई टाळयां नी टळै
हरखू री पीढी रै दरसण रौ औ सांच
चांद, तारां, जीमं अर सूरज रौ सांच है,
जमीं सूरज रै च्यारूं मेर गरणावै
आ भावी है।
अै डोळा डूबै, आंख्यां फाटती जावै
आ भावी है।
सियाळै री रातां-बासदी अर बड़गड़ां री बातां
झूपड़ी में ठौड़ नीं, क्यूं कै टाबर सूता है।
आ भावी है
पण उणरी आंख्यां उण दिन इचरज सूं फाटगी ही
जद जगतयै डांग सांमी जोवतां पूछ्यौ हौ-
‘आ बात सांची है कांई जीसा-
भैरौ कैवतौ कै पाणी मेें झाळ व्हिया करै ?’
वै फाटता डोळां बोल्या-
‘बडेरा बातां में कैवता हा बेटा-
कै समदर रै पाणी में अगन व्हिया करै।’
कुण जांणै कांई ठा।

जगती री अणमापी अणधापी
आ आगोतर
जद तन्दूरी तारां चढै-
‘हो राजा बाबू भावी नांय टरै।’
औ रणुकारौ आभै अर धरती में गरणावै
बाड़ै में माटी थपथपाता
हरखू रा हाथ आ बात जाणै
कै माटी अर रोटी कित्ती नैड़ी है।
पण वै फाट्योड़ी आंख्यां
अलेखूं रूपाळा चितराम काढती सोचै
सातूं पीढ्यां रा सिसकारां साथै-
‘कदास आगलै भव में
आ जिनावर री जूण टळ जावै।’
खेतां रा खळा गायां रा गवाड़
अर सूना ऊंटां रा टोळा
लू सूं सजियोड़ा धोरा
पाणी नै उडीकता डेरा
फाट्योड़ी आंख्यां सूं
सातूं पीढ्यां रा सिसकारां साथै
तन्दूरी तारां रै साथै गावै-
‘कदास आ जिनावर री जूंण टळ जावै।’
अर मिनखां मून लियोड़ा मूंडां रै
चरणां में निंव जावै-
‘कदास आगोतर सुधर जावै।’
अर वा तीजोड़ी पीढी
छांनै-मांनै सदा अंधारै
जांणै कांई गुणमुण-गुणमुण करै गटरका
भज्योडी भींतां नै होळ-सी कैवै
‘छोरा बीगडग्या-सेठ सा नै सलांम नी करै।
चांद-तारां नै हाथ घालै,
आं नै ठा नीं कै आदमी पेट कियां पाळै।’
वै कैवै-अै न्यारा-न्यारा मुद्दा है-
(कै आदमी पांणी क्यूं पिया करै।)
पण चारूं कूंट दो जूंण सारू भटक्योड़ौ
हरखूं हंस नै बोलै-
छोरा ठीक कैवै
दियावां च्यार नीं चौसठ व्हिया करै
हां, आ बात न्यारी है कै
आदमी पांणी क्यूं पिया करै
हर आदमी जीवण सारूं जिया करै।
पण हरेक होठां रौ सांच
हंसी नीं व्हिया करै।