Last modified on 12 अक्टूबर 2016, at 18:46

हंसवाहिनी / कैलाश पण्डा

ओ तेरे सान्निध्य में
ऋषिगण
ज्ञानमय दुग्धपान कर
कृतकृत्य हो
सुकृत सरोजमय
जलधार से सिंचित
उस पार बहते हुए चले गये
और, मैं तेरे अभाव में
शुष्क कंटमय वीरान सा
परिमित
अरू जीवन वाहक
बनकर रह गया
ओ रसातलवासिनी अब तो तुम
ऊर्ध्व गामिनी बन कर
पुनः बहो कपाल में
ओ माँ, मैं तेरा अर्चन करता
अपनी वीणा के तार से
वेद की ऋचाओं को
अनावरण कर दो
ओ हंसवाहिनी
अपने श्‍वेताम्बर से
जग को आवृत कर दो।